पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२०३

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..[ ११२ ] कुंडन के ऊपर कड़ाके उठे ठौर ठौर जीरन के ऊपर खड़ाके खड़गन के ॥ ३२८ ॥ आगे आगे तरुन तरायले चलत चले तिनके अमोद मंद मंद मोद सकसै। अड़दार बड़े गड़दारन के हाके सुनि अड़े गैर५ गैर माहिं रोस रस अकसै ॥ तुंडनाय सुनि गरजत गुंज- रत भौंर भूषन भनत तेऊ महा मद छकसै। कीरति के काज महाराज सिवराज सब ऐसे गजराज कविराजन को बकसै ॥ ३२९॥ भाविक लक्षण-दोहा भयो, होनहारो, अरथ बरनत जहँ परतच्छ । ताको भाविक व.हत हैं भूषन कवि मतिस्वच्छ ॥ ३३० ।। भूतकाल प्रत्यक्ष-उदाहरण-कवित्त मनहरण अौं भूतनाथ मुंडमाल लेत हरषत भूतन अहार लेत अजहूँ उछाह है। भूपन भनत अजौं काटे करवालन के कारे १ लोहे का टोप। २ जिरह वल्लर। ३ खेल कूद।.. ४ छेद ३१-३४ का नोट देखिए। ५ गैल गैल; राह राह। .