पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२१

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[१२] और जान पड़ता है कि सन् १६६७ ईसवी में ही उसका निर्माण प्रारंभ कर दिया था, क्योंकि ग्रंथारंभ ही में तीन बड़े प्रभावशाली छंदों में शिवाजी के दिल्लीश्वर से साक्षात्कार का वर्णन है ( छंद नंवर ३४, ३५ व ३८ देखिए)। यदि भूषणजी सन १६६६ के पहले शिवाजी के यहाँ पहुँचे होते और हतोत्साह होकर लौट आते, तो इतने शीव, एक ही साल के भीतर, उस समय के भयावने मार्ग का इतना लंबा सफर करके अपने घर से फिर महाराष्ट्र देश तक न पहुँच सकते। इससे विदित होता है कि शिवाजी के आगरे से लौटने के पश्चात् भूपण उनके दरबार में हाजिर हुए (अर्थात सन १६६७ में)। (३) यदि भूपणजी सन् १६६७ के बीच तक शिवाजी के यहाँ पहुँच गए होते, जब कि छत्रसाल बुंदेला ने शिवाजी से भेंट की थी (लालकृत छत्रप्रकाश देखिए), तो वे इस भेट का हाल शिवराजभूपण में ही कहीं न कहीं अवश्य लिखते। इससे जान पड़ता है कि १६६७ ईसवी के अंत में भूपणजी शिवाजी के यहाँ पहुँचे होंगे। भूपणनी के जन्म से लेकर रुद्रराम सोलंकी के यहाँ जाने तक में तो कोई दो मत नहीं हैं, पर यहाँ से कतिपय लोग इनका दिल्लीश्वर औरंगजेब के यहाँ जाना बतलाते हैं और वादशाह से लड़ाई झगड़े की बातें करके इनका शिवाजी के यहाँ जाना मानते हैं: पर ये बातें अग्राह्य सी है। चिटणीस की बखर में लिखा है कि चिन्तामणि के भाई भूपण कवि शिवाजी के दरबार में जाकर