पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२२१

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[ १३० ] सु विनोक्ति भूपन समासोक्तिहु परिकरौ अन वंस । परिकर सु अंकुर श्लेप त्यों अप्रस्तुतीपरसंस ॥ परयायउक्ति गनाइए व्याजस्तुतिहु आक्षेप । बहुरो विरोध विरोधभास विभावना सुख खेप ॥ ३७४ ॥ सु विसेपउक्ति असंभवौ बहुरे असंगति लेखि। पुनि विपम सम सुबिचित्र प्रहपन' अरु विपादन पेखि ॥ कहि अधिक अन्योन्यहु विसेप व्यघात भूपन चारु । अरु गुंफ एकावली मालादीपकहु पुनि सारु ॥ ३७५ ।। पुनि यथासंख्य वखानिए परजाय अरु परिवृत्ति । परिसंख्य कहत विकल्प हैं जिनके सुमति संपत्ति । वहुखो समाधि समुच्चयो पुनि प्रत्यनीक बखानि । पुनि कहत अर्थापत्ति कविजन काव्य. लिंगहि जानि ॥ ३७६ ॥ ____ अरु अर्थअंतरन्यास भूपन प्रौढ़उक्ति गनाय । संभावना मिथ्याध्यवसिततऽरु यों उलासहि गाय ॥ अवज्ञा अनुज्ञा लेस तद्गुन पूर्वरूपउलेखि । अनुगुन अतद्गुन मिलित उन्मीलितहि पुनि अवरेखि ॥ ३७७॥ ___ सामान्य और विशेष पिहितौ प्रश्न उत्तर जानि । पुनि व्याज- उक्ति रु लोकउक्ति सु छेकउक्ति वखानि ॥ वक्रोक्ति जानि सुभाव उक्तिहु भाविको निरधारि । भाविकछबिहु सु उदात्त कहि अत्युक्ति बहुरि बिचारि ॥ ३७८॥ १ प्रहर्षण।