पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३०

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[ १३९ ] कैयक हजार जहाँ गुर्ज-बरदार ठाढ़े करि के हुत्यार नीति पकरि समाज की । राजा जसवंत को बुलाय कै निकट राखे तेऊ लखें नीरे जिन्हें लाज स्वामि-काज की ॥ भूपन तबहुँ ठठकत ही गुसुलुखाने सिंह लौं झपट' गुनि साहि महराज की । हटकि हथ्यार फड़ वाँधि उमरावन को कीन्ही तब नौरंग ने भेंट सिवराज की ॥१६॥ ___ सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिवे के जोग ताहि खरो कियो जाय जारन के नियरे । जानि गैर मिसिल गुसीले गुसा धरि उर कीन्ही ना सलाम न वचन बोले सियरे ॥ भूपन भनत महावीर बलकन लाग्यो सारी पातसाही के उड़ाय गये जियरे । तमक ते लाल मुख सिवा को निरखि भये स्याह मुख नौरँग सिपाह मुख पियरे ॥ १७ ॥ राना भो चमेली और वेला सव राजा भए ठौर ठौर रस लेत नित यह काज है। सिगरे अमीर आनि कुंद होत घर घर भ्रमत भ्रमर जैसे फूलन की साज है ॥ भूपन भनत सिवराज वीर तेहीं देस देसन में राखी सव दच्छिन कि लाज है । त्यागे सदा पटपद पद अनुमानि यह अलि नवरंगजेब चंपा. सिवराज है ॥ १८॥ १ इस छंद में रौद्र एवं भयानक रस है। २ दिलो में कुछ लोगों ने ऐसी हवा उड़ा रक्खी थी कि शिवाजी कभी कभी २५ हाथ का एक डग रखते थे। इस छंद में कथित प्रायः सभी बातें ऐतिहासिक हैं।