पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३१

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[ १४० ] कूरम' कमल कमधुज' है कदमफूल गौर है गुलाब राना' केतकी विराज है । पाँडरि पँवार जुही सोहत है चंद्रावल सरस बुंदेला सो चमेली साज बाज है । भूपन भनत मुचकुंद बड़गूजर हैं वघेले वसंत सब कुसुम समाज है । लेइ. रस एतेन को वैठि न सकत अहै अलि नवरंगजेब चंपा सिवराज है ॥ १९ ॥ देवल गिरावते फिरावते निसान अली ऐसे डूवे राव राने .. सबी गए लवकी । गौरा गनपति आप औरन को देव ताप आप के मकान सब मारि गये दबकी ॥ पीरा पयगंबरा दिगंबरा दिखाई देत सिद्ध की सिधाई गई रही बात रव की । कासिहु ते कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न होतो तो सुनति" होति सब की ।। २० ॥ १ महाराज जयपुर कछवाहे होने के कारण कूर्मवंशी कहलाते हैं। २ महाराज बोधपुर । कबंधन । युद्ध में इनके पूर्वपुरुप जयचंद महाराज कन्नौज का कबंध उठा था, इसी से उनके वंशो कबंधन कहलाते हैं। ३ महाराना उदयपुर। ४ इस छंद में नम संमेद रूपक है। ५ लदलवा गए, निर्वल हो गए। यह भी हो सकता है कि लवा [छोग पक्षो] के समान हो गए। ६खुदा, ( यहाँ पर) मुसलमानी देवता । ७ खतना, मुसल्मानी।