पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ १४४ ] दीन है भाख्यो। सोरँग है सिवराज वली जेहिं नौरंग में रंग' एक न राख्यो ।। २७ ॥ . सूवा निरानंद वादरखान गे लोगन बूझत व्योत वखानो । दुग्ग सबै सिवराज लिये धरि चार विचार हिये यह आनो ॥ भूपन बोलि उठे सिगरे हुतो पूना में साइतखान को थानो । जाहिर है जग में जसवंत लियो गड़सिंह मैं नीदर' वानो ॥२८॥ कवित्त मनहरण . जोरि करि जैहैं जुमिला हू के नरेस पर तोरि अरि खंड खंड सुभट समाज पै। भूपन असाम रूम बलख बुखारे हैं चीन सिलहट ४ तरि जलधि जहाज पै ।। सब उमरावन की हठ कूरताई देखौ कहें नवरंगजेब साहि सिरताज पैं। भीख माँगि खहैं विनु मनसब रैहे पै न जैहैं हजरत महाबली सिव- राज पै ।। २९॥ चंद्रावल चूर करि जावली जपत" कीन्ही मारे सब भूप १ काव्यलिंग बलंकार। २ नसवतसिंह ने सिंहगढ़ को सन् १६६३ में नाम मात्र को घेरा, परंतु फिर कुछ किए बिना मोहासिरा उठा लिया । यह छंद स्फुट कविताले यहाँ रक्खा गया है। ३ शि० भू० छंद नं० ११२ देखिए । ४ आसाम में है। वहाँ की नारंगी मशहूर है। ५शि० भू० छंद नं० २०६ का नोट देखो। चंद्रावल, चंदरावल, चंद्रराव मोरे ।