पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२४

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[ ५ ] (शिवाजी) की पुनः प्रार्थना पर भी न पढ़ सके। तब शिवाजी ने अपना नाम बतला कर कहा कि हमने प्रतिज्ञा की थी - कि जितनी बार आप यह छंद पढ़ेंगे उतने लक्ष मुद्रा, उतने हाथी और उतने ही ग्राम हम आपको देंगे। अधिक मिलना आपके भाग्य में न था। भूषण जी ने उतने ही पर पूर्ण संतोष प्रकट कर कहा कि अब विशेष मुझे क्या चाहिए ? निदान इसी समय से शिवाजी के यहाँ जा वे राजकवि वने । इसी समय ( १६६७ ईस- वी के अंत ) से ये महाशय धीरे धीरे सन् १६७३ ईसवी (संवत् १७३०) तक "शिवराज भूषण" ग्रंथ के छंद अलंकारों के हिसाब पर बनाते रहे ( इस विपय पर शिवराज भूषण संबंधी भूमि- कांश देखिएं)। ___ सन् १६७४ या ७५ ईसवी के आसपास भूषणजी कुछ दिनों के लिये अपने घर लौटे और रास्ते में छत्रसाल बुंदेला के यहाँ पहुँचे । उन्होंने संभवतः छत्रसाल-दशक के दो प्रारंभिक दोहे एवं छंद नं० ३ इस अवसर पर पढ़े और बड़े सम्मान के साथ वे कुछ दिन वहीं रहे। चलते समय छत्रसालजी ने भूषण के छंद ५२ बार पढ़ा गया; पर १८ वार हा पढ़ा जाना अधिक मान्य प्रतीत होता है । शिवाजो का दान निम्नलिखित छंदों में वर्णित है जा उपर्युक्त बड़े दान को सत्यता सिद्ध करते हैं, यथा शि. भू० छंद १४०, १७१, १७५, २१५, ३२६, २२१, २८० २८३, ३३६, ३४०, इत्यादि इत्यादि ।

  • सं० १७६० के लोकनाथ कवि भूपण को ५२ हाथी मात्र मिलना लिखते

है । इससे ग्रामों तथा १८ लाख को कथा संदिग्ध है । प्रचुर धन मात्र ठीक है।