पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२६५

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[ १७४ ] सुने हजै बेसुख सुने विन रह्यो न जाय, याही ते विकल सी विहाती दिन राती हैं । भूपन सुकवि देखि बावरी विचार काज भूलिवे के मिस सास नंद अनखाती हैं | सोई गति जाने जाके मिदी होय कानै सखि जेती कटें तानै तेती छेदि छेदि जाती हैं। हूक पाँसुरी में, क्यों भरौं न आँसुरी में, थोरे-छेद बाँसुरी में, घने छेद किए छाती हैं ।। २८ ॥ देह देह. देह फेरि पाइए न ऐसी देह, जौन तौन जो न जाने कौन तौन आइबो । जेते मन मानिक हैं तेते मन मानिक हैं, धराई में धरे ते तौ धराई धराइयो ।। एक भूख राख, भूख राखै मत भूपन की, यहो भूख राख भप भूपन बनाइयो । गगन १ सात त्या ननद नायिका को प्रेम ने दावली समझ कर विचार करने (चेतने) के अभिप्राय से भूलों के बहाने उससे नाराज होती हैं। २ शांत रस का वर्णन है। दान करो, दान करो, दान करो, ऐसा शरीर फिर नहीं मिलता है, जो नौन तौन ( इधर उधर की ) नहीं जानता उस किसको भाना है (उसे पुनर्जन्म नहीं लेना है, क्योंकि वह मुक्त हो जायगा।) ३ जितने मणि माणिक्य हैं, उन्हें मन में मानकर हम कहते हैं कि वे पृथ्वी पर ही धरे हैं और उन्हें पृथ्वी पर ही धरना चाहिए. (प्रयोजन यह है कि पार्थिव पदार्थ साथ नहीं जाते, जो उनके अधिक संलग्न न होना चाहिए)। ४ एक हो (ईश्वर की ) क्षुधा रख, अलंकारों की क्षुधा मत रख, केवल यही क्षुधा ( भूख, इच्छा ) रख कि अपने को भूखों का राजा नहीं बनाना है । ५ आकाश को गमन ( मरण) के समय यमराज ( पार्थिव वस्तुओं को ) गिनने न देगा, पहाड़ और नगीवा साथ न चलेगा और नंगे चलना होगा।