पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२६७

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[ १७६ ] भूप सिवराज करि कोपिरन मंडल में खग्ग धरि कुचो चकता के दरवारे में। काटे भट विकट त्यों गजन को सुण्ड काटे, पाटे रनभूमि काटे दुवन सितारे में ॥ भूपन भनत चैन उपजे सिवा के चित्त चौंसठि' नचाई जवै देवा के किनारे मैं । आँतन की तांति वाजी, खाल की मृदंग वाजी, खोपरी की ताल बसुपाल के . अखारे में ॥ ३३॥ ___ मारेदल मुगल तिहारी तरवारि आगु छलि विछलि म्यान वांबीते निकासतीं । तेरी तरवारि लागे दूसरी न मांगै कोऊ काटि कै कलेजा शोन पीवत विनासतीं। साहि कै सपूत महाराज सिव- राज वीर तेरी तरवारि स्याह नागिनी सी भासती । ऊँट हय पैदरि सवारन के झुण्ड काटि, हाथिन के मुंड तरबूज लौं तरासती ॥३४॥ तेरी स्वारी माँझ महराज सिवराज बली ! केते गड़पतिन के पंजर मचकिगे। केते वीर मारि कै विडारे किरवानन ते, केते गिद्ध खाय केते अम्बिका अचकिगे ॥ भूपन भनत रुंड मुंडन की माल करि चारि पार्यं नदिया के भारते भनकिगे। टूटिगे पहार विकराल भुव मण्डल के, सेस के सहस फन कच्छप . "कचकिगे ॥ ३५॥ १ नर्मद के तट पर चौंसठि नोगिनी का एक मन्दिर अव भी है। २ कालो द्वारा छक कर खाये गये। ३ बोझ से टेढ़े पड़ गये। ४ कचका खा गये; गडा पड़ गये ।