पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२८

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[ १९ ] जी इनके दरबार में रहते ही थे और इनके प्रपितामह के अग्रज राव भाऊसिंह के यहाँ रहकर 'ललितललाम' बना चुके थे, एवं आगे चलकर कवींद्रजी ने भी राव बुद्ध की प्रशंसा में कई कवित्त कहे हैं। तो भी भूषणजी राव बुद्ध की खातिर बात से बिलकुल अप्रसन्न रहे, यहाँ तक कि इसके पश्चात् उन्होंने साफ कह दिया कि अब कोई रावराजा मन में भी न लाऊँगा ! इससे स्पष्ट विदित होता है कि छत्रसाल बुंदेला ने लड़कपन के जोश में इनकी पालकी का डंडा अवश्य कंधे पर रख लिया होगा, क्योंकि ये शिवाजी द्वारा भी सम्मानित थे और छत्रसाल शिवाजी को बहुत . ही पूज्य दृष्टि से देखते थे, जैसा कि लालकृत "छत्रप्रकाश" से विदित होता है । इसी छंद में इन्होंने छत्रसाल के पहले साहू को सराहने की प्रतिज्ञा की है, सो भी ऐसे समय में जब ये स्वयं छत्रसाल के यहाँ विद्यमान थे। इससे स्पष्ट है कि साहूजी ने भी इनका पूरा सम्मान किया होगा। लगभग सन् १७१५ ई० में एक बार भूषणजी फिर साहूजी के दरबार में गए होंगे। इसी समय स्फुट छंद नंवर ७ बनाया गया होगा। यह छंद उस समय का है . कि जब साहूजी का राज्य भली भाँति स्थापित हो चुका था और उन्होंने उत्तर का धावा किया था। यह छंद मुद्रित प्रतियों में भी छपा है। भूपणजी की कविता अथवा किसी अन्य प्रसंग से उनके सन् १७४० के पीछे जीवित रहने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। उनके छंदों में इस समय तक के महापुरुषों के कथन हैं। अव