पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३१

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[ २२ ] बहुत किया था, क्योंकि इनके छंदों में सैकड़ों स्थानों एवं तत्का- लीन ऐतिहासिक मनुष्यों के नाम आए हैं। प्राचीन ग्रन्थों में भूपण के वंश का कुछ वर्णन मिलता है। वंश-भास्कर सन १८४० का ग्रन्थ है जिसमें लिखा है कि 'जेठो भ्राताभूपनरु मध्य मतिरामतीजोचिंतामनिविदित भये ये कविता प्रवीन मनोहरप्रकाश सन् १८९५ का ग्रंथ है जोचिंतामणि, भूषण; मतिराम और जटाशंकर को इसी क्रम से भाई मानता है। यही मत शिवसिंह-सरोज का भी है जो इससे १८ वर्ष पुराना ग्रंथ है । मतिराम के वंशयर विहारीलाल ने संवत् १८७२ में रस-चन्द्रिका नानी एक टीका की पुस्तक लिखी । उसमें आपने लिखा है कि मेरे पिता का नाम जगन्नाथ, पितामह का सीतल तथा प्रपितामह का मतिराम था । आप अपने को कश्यप गोत्री कान्यकुज तिवारी कहते हैं और यह भी लिखते हैं कि भूपण, चिन्तामणि तथा मतिराम को नृपहमीर ने सम्मान से जमुना किनारे त्रिविक्रमपुर में बसाया था। इन्हीं विहारी लाल के समकालीन नवीन कवि भी इन्हें मतिराम का वंशधर मानते हैं। पंडित मयाशंकर जी वाज्ञिक ने चिंतामणि-कृत रामाश्वमेव ग्रंथ में यह देखा है कि चिंतामणि अपने को कान्यकुब्ज, कश्यपगोत्री, मनोह के तिवारी कहते हैं। विलग्राम के विद्वान् गुलाम अली ने सन् १७५३ में 'तजकिरा-सर्व- आजाद हिन्द ग्रन्थ लिखा । उसमें आप लिखते हैं कि चिंतामणि के भाई मतिराम और भूषण थे। सन् १७०३ के लोकनाथ कवि ने लिखा है कि शिवाजी ने भूषण को ५२ हाथी देकर सम्मा-