पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३७

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[ २८ ] . छोड़ दिया। इस समय ये दक्षिण के सब किले जीत चुके थे। शिवाजी की सभा बहुत ही अच्छी और दुर्ग वड़ा ऊँचा तथा दृढ़ था। आपने बहुत से दुर्ग बनवाए और अपना राज्य अनेकानेक विजयों द्वारा बहुत बढ़ाया। __ सन् १६६३ में मुगलों ने इनका वल बहुत बढ़ता देखकर जोधपुर के महाराज जसवंतसिंह और शाइस्ता खाँ को इनके विरुद्ध एक बड़ी भारी फ़ौज के साथ भेजा । शाइस्ता खाँ एक लाख फौज के साथ पूना में आकर ठहरा । शिवाजी ने उसे बड़ी बुद्धि- मानी से परास्त किया । सन् १६६४ में इन्होंने मुगलों के राज्य में घुसकर सूरत को लूटा और फिर मक्का जानेवाले बहुत से सैयदों की नौकाएँ लूट ली तथा दंड लेकर उन्हें छोड़ा। इसपर औरंगजेब ने बड़ा क्रोध करके एक बड़ा दल जयपुर के महाराज मिर्जा राजा जयसिंह के आधिपत्य में शिवाजी से लड़ने को भेजा। अब इन पर वड़ा संकट पड़ा, क्योंकि ये हिंदू का खून बहाना नहीं चाहते थे। अतः सन् १६६६ में इन्होंने जयसिंह को कुछ गढ़ दिए और फिर आगरे भी गए। औरंगजेब ने अभिमान करके इन्हें पंचहजारी सरदारों में खड़ा किया। इस पर इन्होंने राजगढ़ में न थे। सो से विदित है कि "राजगढ़" लिखने से भूषण का रायगढं का प्रयोजन था, नहीं तो उनका राजगढ़ संबंधी समस्त वर्णन अशुद्ध हो जाता है। अतः यही मानना चाहिये कि य और न में भेद न मानकर भूषण ने रायगढ़ को राजगढ़ लिखा है अथवा लेखकों के भ्रम से उनका वास्तविकं शब्द रायगढ़ राजगढ़ हो गया । दूसरा अनुमान हो ठीक ऊँचता है । इसी लिए हमने मल में शुद्ध शब्द का प्रयोग किया है !