पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/४४

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[ ३५ । महाराज जसवंतसिंह भीतरी सूरत से औरंगजेब के घोर शत्रु थे, परंतु दिखाने को उससे मिले हुए थे। इसका कारण इनका 'हिंदुओं से प्रेम एवं औरंगजेब की कट्टरता थी। जब ये महाराज मुग़लों की ओर से सन् १६६३ ई० में शाइस्ताखाँ के साथ शिवा जी से लड़ने गए थे, तब शिवाजी से मिलकर इन्होंने शाइस्ताखाँ के दल की दुर्गति करा डाली थी। इसी प्रकार शाहशुजा से मिल कर इन्होंने औरंगजेब को धोखा दिया था। इन कारणों से - औरंगजेब इनसे बहुत कुढ़ता था, परंतु कई उचित कारणों से इनसे खुल्लमखुल्ला लड़ना अच्छा नहीं समझता था। इसी कारण उसने इन्हें काबुल में लड़ने के लिये भेज दिया और वहाँ जब ये महाराज सन् १६८० में मर गए, तब उसने राठौरों पर क्रोध प्रकट किया। महाराज जसवंतसिंह के सव पुत्र मर चुके थे, केवल एक कई मास का लड़का, जो काबुल में पैदा हुआ था, जीवित था। जब राठौर लोग काबुल से लौटकर दिल्ली आए, . तब औरंगजेब ने उन्हें घेर लिया और उस लड़के सहित उन्हें मार डालने का पूर्ण प्रयत्न किया। परंतु राठौरों ने उस बच्चे को किसी प्रकार बचा लिया और मुग़लों से लड़ते भिड़ते वे जोधपुर जा पहुँचे । मुग़लों ने उनका पिंड जोधपुर में भी न छोड़ा और प्रायः समस्त मारवाड़ पर अपना दखल जमा लिया, परंतु दुर्गादास के आधिपत्य में राठौर लोग अपने बालक महाराज को .. पहाड़ों में छिपाए हुए औरंगजेब से लड़ते रहे। यही बालक समय पाकर राठौरों का प्रसिद्ध और प्रतिभाशाली अजीतसिंह