पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/४७

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[ ३८ ] जोती रही । दिनों दिन उनका बल मंद पड़ता जाता था और मरहठों की विजय-वैजयंती फहराती जाती थी। . ___औरंगजेब ने देखा कि यदि अब यहाँ और रहूँगा, तो समस्त सेना पराजित हो जायगी और मैं पकड़ लिया जाऊँगा । यह सोच कर वह अहमदनगर चला गया और इन आपदाओं से उसका हृदय ऐसा विदीर्ण हो गया कि ८८ वर्ष की अवस्था में वह सन् १७०७ में परलोकवासी हुआ । उसने अपने पुत्रों में बखेड़ा बचाने के विचार से राज्य के तीन भाग कर दिए, परंतु शाहजादों ने यह न माना । दक्षिण में मँझला शाहजादा आज़म औरंगजेब के साथ था। उसने अपने बड़े भाई मुअज्जम से, जो दिल्ली में था, युद्ध करना निश्चय किया। इस कारण उसने मरहठों में झगड़ा पैदा कर देने के विचार से साहूजी को छोड़ दिया, परंतु मरहठों ने बिना किसी विशेष झगड़े के साहूजी को अपना महाराज मान लिया और राजाराम के पुत्र कोल्हापुर के महाराज हो गए । उनके वंशधर अब भी कोल्हापुर के महाराज हैं। आजम और मुअज्जम का सन् १७०७ ई० में जाजऊ पर घोर युद्ध हुआ जिसमें आज़म मारा गया और मुअज्जम बहादुरशाह की उपाधि धारण करके बादशाह हुआ।

अब औरंगजेब के तीसरे पुत्र कामबख्श ने बहादुरशाह का

सामना किया, परंतु वह हार गया और फिर युद्ध के घावों से मर भी गया। इस प्रकार जो भारी मुग़ल दल औरंगजेब दक्षिण जीतने को ले गया था, वह मरहठों तथा शाहजादों के.