पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/५१

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[ ४२ ] उनकी छोटी छोटी टुकड़ियों को इन्होंने हराया। अंत में उन सब को एक साथ ही बड़े विकराल युद्ध में ध्वस्त करके आपने उनकी सेना को खूब ही काटा। शाहजहाँ ने फिर एक सेना भेजी। तब इन्होंने वादशाह की सेवा स्वीकार कर ली और तीन लाख की मालगुजारी पर कोंच का परगना पाया। एक बार चंपतिराय दारा के साथ काबुल में लड़ने गये । वहाँ इन्होंने वड़ी वीरता दिखाई, परंतु दारा के चित्त में हर्प के स्थान पर चंपति से ईर्ष्या उत्पन्न हुई, यद्यपि इन्हीं के कारण उन्हें कई विजय प्राप्त हुई थीं। तब दारा ने ओड़छे के राजा पहाड़- सिंह को नौ लाख की मालगुजारी पर कोंच का परगना दे दिया। इस कारण चंपति और दारा में द्रोह हो गया। इस के थोड़े ही दिन पीछे दारा और औरंगजेब में राज्यार्थ सन् १६५८ में धौलपुर में घोर युद्ध हुआ। इस युद्ध में चंपतिराय ने औरंगजेब का साथ दिया और उसकी सेना के हरौल में रह कर ये लड़े। दारा के हरौल में वूदीनरेश हाड़ा छत्रसाल थे। इसमें दारा की पराजय हुई और छत्रसाल हाड़ा घोर युद्ध करके मरे। इसी युद्ध का वर्णन भूषण ने छत्रसाल दशक के प्रथम दो छंदों में किया है । इस युद्ध के फलस्वरूप औरंग- जेब ने चंपतिराय को बारह हज़ारी का मनसव और ऐरछ, शाहजादपुर, कोंच और कनार जागीर में दिए । तव चंपति अपने घर चले आए। कुछ दिनों बाद औरंगजेब ने कहला भेजा कि अगर घर में बैठे रहोगे, तो मनसब घट जायगा और नुक-