पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/६४

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इस छंद में भूपण ने अंत में निश्चय कर दिया; सो अलंकार बन बना कर बिगड़ गया; परंतु यहाँ इनका दूपण क्षग्य है; क्योंकि इनका अलंकार बन चुका था, तथापि इन्होंने स्वयं उसे. नायक के कारण विगाड़ दिया। ___सामान्य =सादृश्य के कारण जहाँ भिन्न वस्तुओं में भेद न जान पड़े । (शि० भू० छंद नं० ३०५ देखिए) । इसमें तोपों की चमक का चपला की भाँति चमकने से भेद खुल गया और अलंकार बिगड़ गया। ___ भूपणजी ने छंद नं० २६४ व २६७ में अर्थातरन्यास और प्रौढोक्ति के लक्षण कई और कवियों के विरुद्ध लिखे हैं। आपने छंद नं० ३७९ में लिखा है कि मैंने अपने लक्षण अलंकार ग्रंथ देखकर और “निज मतो” से बनाए हैं, सो यहाँ उनका मत समझना चाहिए । शिव० भूपण नं० ६०, १४६ और २५५ में भी ऐसे ही लक्षण हैं। . इस महाकवि ने लुप्तोपमा, उत्प्रेक्षा, चंचलातिशयोक्ति, असं. गति, विरोधाभास, विरोध और पूर्वरूप आदि के बड़े ही उत्कृष्ट उदाहरण दिये हैं। ध्यानपूर्वक देखने और हठपूर्वक बात करने से इनके कई आलंकारिक उदाहरणों में दोप दिखलाया जा सकता है। वास्तव में भूपण अलंकारों के भारी आचार्य न होकर काव्योत्कर्प में महान हैं। आचार्य्यता में मतिराम की विशेपता है। .. - शिवराज भूपण में कवि ने अलंकारों हो पर पूर्ण ध्यान दिया