पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/६५

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[ ५६ ] है; अतः युद्धप्रधान ग्रंथ होने पर भी पूर्ण वीररस के बहुत अच्छे उदाहरण इस ग्रंथ में नहीं मिलते । हाँ, भयानक तथा रौद्र रसों के उत्तम उदाहरण भी यत्र तत्र देख पड़ते हैं, मुख्यशः भयानक रस के, जिस ( रस ) के वर्णन में भूपण महाराज बड़े पटु है। इन्होंने शिवाजी के दल का वर्णन इतना नहीं किया है जितना कि शत्रुओं पर उसकी धाक का। इसी हेतु इनके ग्रंथ में भया- नक रस का बहुत अधिक समावेश है । रसों के उदाहरण शिवा- बावनी में अधिक उत्कृष्ट देख पड़ते हैं । भूपणजी अमृतध्वनि खूब अच्छी बना सकते थे। अन्य कवियों की अमृतध्वनियों में निरर्थक शब्द बहुत आ जाते हैं, परंतु भूपणजी के छंदों में ऐसा नहीं है __सब बातों पर विचार करने से विदित होता है कि "शिव- राज-भूपण" एक बड़ा ही प्रशंसनीय ग्रंथ है । इसमें प्रायः समस्त सत्य घटनाओं ही का वर्णन है और शिवाजी का शील गुण आद्योपांत एक रस निर्वाह कर दिया गया है । इतिहास देखने से जो जो गुण शिवाजी में पाए जाते हैं, उन सब का पूर्ण विव- रण इस ग्रंथ में मिलता है। हाँ, एक में अवश्य विभेद है; और वह इस प्रकार है कि इतिहास से प्रकट होता है कि शिवाजी भवानी के बड़े भक्त थे और प्रायः समस्त बड़े कार्य उन्हीं की आज्ञा से करते थे, परंतु भूपणजी ने इन्हें केवल शिवभक्त भी बताया है। शिवाजी के शैव होने के विषय में छन्द नं० १४, १५८, २३६ और ३२६ देखिए। शिवाजी शिव तथा भवानी दोनों के भक्त थे, ऐसा इतिहास में आया है। .. . .