पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/७०

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छत्रसाल-दशक ___जान पड़ता है कि भूपण महाराज ने छत्रसाल के विषय में बहुत से छंद बनाए थे; क्योंकि उन्होंने सन् १६८० से सन्द १७०५ तक सिवाय छत्रसाल के और किसी का अधिकता से यश वर्णन नहीं किया। उन्हीं छन्दों में से आठ घनाक्षरी और दो दोहे इस ग्रंथ में रक्खे गए हैं; और दो घनाक्षरी चूदी नरेश महाराज छत्रसाल हाड़ा विषयक इसमें हैं। इसकी मुद्रित प्रतियों में राव राजा बुद्धसिंह विपयक एक छंद भी था जो अब हमने स्फुट काव्य के तीसरे नंबर पर रख दिया है । उसके स्थान पर छंद नंबर ९ इसमें स्फुट कविता से लाकर हमने रक्खा है। इस ग्रंथ का भी क्रम हमने इतिहास के विचार से पूर्वापर क्रमानुसार कर दिया है । बूंदी नरेश के दोनों छंद प्रथम रख देने का कारण भी स्पष्ट है । यद्यपि वे सन् १७१० के लगभग बनाए गए थे, तथापि उनमें घटना सन् १६५८ की वर्णित है। तृतीय छंद हमारे अनुमान में सन् १६७५ में बनाया गया था और उसी सन् में चतुर्थ और पंचम छंद बने (बुंदेलों के इति- हास संबंधी भूमिकांश देखिए)। छंद नं०६ सन् १६९० एवं नंबर सात १७०० की घटनाओं से संबंध रखता है। छंद नंबर आठ और नौ संभवतः सन् १७०८ में बने और नंबर दस सन्, १७११ के लगभग बना।