पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/८२

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[ ७३ ] उत्तम छंद भूपणजी की कविता में बहुत से उत्तम छंद हैं । हम उनके परमोत्कृष्ट छंदों की एक सूची नीचे देते हैं। इनमें से कई छंदों में उदंडता भी पाई जायगी। शिवराजभूपण के उत्तम छन्द १६ से २३ तक, ३५, ३७, ३८, ४२, ४८, ५६, ६८, ८७, ९७, ९९, २००, १२३, १२५, १३०, १३४, १५०, १७३, १७६, १८२, १८६, २००, २०६, २०७, २२६, २४५, २४७, २५२, २५४, २५८, २७५, २८८, २९०, २९३, २९५, ३०१, ३०५, ३०७, ३१०, ३२६, ३२८, ३३१, ३३२, ३३४, ३४८, ३५०, ३६०, ३६१, ३७० । शिवावावनी के छंद २, ३, ६, २७, २३, २४, २६, २७, ३२, ३५, ३७, ३८, ३९, ४०, ४२, ४३, ४४, ४५, ४६, ४७, ४८, ४९, ५०, ५१ । छत्र. साल दशक के छंद १ से १० तक सभी।. . स्फुट काव्य के छंद २, ८, १४, १६, १७, १८, १९, २०, २२, २३, २८, २९, ३४, ३५, ४४, ४६, ४८ । जातीयता भूपण महाराज को जातीयता का सदैव वड़ा ध्यान रहता था ( शि० भू० नं० १०, १२, ६१, ६९, ७३, १३०, १४३, १४६, २३६, २४५, २५८, २७५, २९३, ३३६, ३३७ । शि० बा० नं० २०, २१, २२, २५, ४८, ५१,५२, । छत्र० दशक नं० ६ स्फुट नं० २१)। इनके जातीयता विषयक इतने छंद होते हुए भी किसी ने शि० वा० छंद नं० ४६ में "हिंदुवानो हिंदुन को हियो हहरत है" लिख