पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/८३

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[ ७४ ] दिया था। भूपण की लेखनी से ऐसे घृणित शब्द निकलने से "महिलाने लहिलन हियो हहरत है। यथार्थ समझ पड़ता है। भूषण जी पूरे जातीय (National ) कवि थे और टेनिसन की भाँति इन्हें भी प्रतिनिधि कवि ( Representative poet) कहना चाहिए। जातीयता. जातिगौरव और हिंदूपने का जितना इन्हें ध्यान रहता था, उतना हिंदी के अधिकांश कवियों को नहीं था। इसका एक भारी प्रमाण यह भी है कि इन्होंने छत्रसाल बुंदेला के सुप्रसिद्ध पिता चंपतिराय पर (जिन्होंने कुछ दिनों के लिये औरंगजेब की सेवा स्वीकार कर ली श्री) एक भी कवित्त नहीं बनाया, पर उनके प्रतिद्वंद्वी छत्रसाल हाड़ा पर दो कवित्त कहे हैं। क्योंकि हांडा महाराज औरंगजेब से लड़े थे। औरंगजेब से भपणजी इन कारण विशेष नाराज थे कि वह हिन्दुओं को सताता था। यद्यपि वर्तमान समय की दृष्टि से इस कवि की मुसलमानों के प्रति कडूक्तियाँ अनुचित एवं विपनर्मित ज्ञात होती हैं. तथापि हम लोगों को इनकी कविता को इस दृष्टि से न जाँचना चाहिए । उस समय औरंगजेब के अधम बर्ताव के कारण हिंदू मुस. लमानों में सूपक मार्जार की भाँति स्वाभाविक शत्रुता थी। अतः इन्होंने चाहे जो कुछ कहा, उस समय वह अनुचित न था। फिर उस काल में शत्रुओं के विषय में परम कटु शब्द कहने की कुछ रीति सी पड़ गई थी, यहाँ तक कि मुसलमान इतिहास- कार शिवाजी एवं मुसलमानों के अन्य शत्रुओं के विपय में