पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ ३ ] महावीर ता वंस मैं भयो एक अवनीस । लियो विरद "सीसौदिया"१ दियो ईस को सीस ।।५।। ता कुल मैं नृपबृंद सब उपजे बखत बुलंद। . भूमिपाल तिन मैं भयो बड़ो "माल मकरंद"२ ॥६॥ सदा दान किरवान मैं जाके आनन अंभु। साहि निजाम सखा भयो दुग्ग देवगिरि खंभु ॥णा ताते सरजा विरद भी सोभित सिंह प्रमान । १“सीसोदिया' क्षत्रिय सभी क्षत्रियों के सिरमौर हैं। इसी वंश के क्षत्रिय उदयपुर एवं नेपाल में राज्य करते हैं। इनका हाल "टाड" कृत "राजस्थान" में देखने योग्य है । इनके पूर्व पुरुप “सीसौद" निवासी थे, जिससे इनकी यह मल्ल पड़ी। . .. २ किसी किसी प्रति में इनका नाम 'माळमकरंद" लिखा है; पर शुद यही माल मकरंद है, क्योंकि इतिहास में इनका नाम "मालो जी" दिया है। इनका जन्मकाल सन् १५५० था। ३ पानी । दान और कृपाण ( बहादुरी) में जिसके मुँह पर सदा पानी (आव) रहता है। ४ निजामशाही बादशाह । मालो जो निजामशाहो बादशाह के सहायक और मित्र थे। ५ मालोजी का "सर जाह" खिताव था, इसी से “सरजा" निकला। प्रयोजन लब्धप्रतिष्ठ से है। भूपण इसे सिंह के अर्थ में भी लिखते हैं, क्योंकि वह भी बन का राजा है।