पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९६

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विरंच हूं की न तिया । भूपन भनत जाकी साहिवी सभा के देखे लागें सव और छितिपाल छिति मैं छियौ ॥ साहस अपार हिंदुवान को अधार धीर, सकल सिसौदिया सपूत कुल को दिया । जाहिर जहान भयो साहिजू खुमान वीर साहिन को सरन सिपाहिन को तकिया ॥ १० ॥ दोहा दसरथ जू के राम भे बसुदेव के गोपाल । सोई प्रगटे साहि के श्री सिवराज भुवाल ॥ ११ ॥ उदित होत सिवराज के मुदित भये द्विजदेव । कलियुग हट्यो मिट्यो सकल म्लेच्छन को अहमेव ।। १२ ।। कवित्त-मनहरण जा दिन जनम लीन्हो भू पर भुसिल भूप ताही दिन जीत्यो अरि उर के उछाह को । छठी छत्रपतिन को जीयो भाग अनायास जीत्यो नामकरन मैं करन प्रवाह को || भूपन भनत बाल लीला गढ़कोट जीत्यो साहि के सिवाजी करि चहूँ चक्क १ विरंचि हू की तिया न=सरस्वती भी नहीं। २ अत्यन्त मैले, तिरस्करणीय । ३ अर्थात् भौसिला। ४ महाराज शिवाजी का जन्म काल १० अप्रैल सन् १६२७ और मृत्युकाल ५ अप्रैल सन् १६८० था।