पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९९

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भूपन भनत जहँ परसि के मुनि पुहुपरागन' की प्रभा । प्रभु पोत पट की प्रगट पावत सिंधु मेघन की सभा ।। मुख नागरिन के राजहीं कहुँ फटिक महलन संग में। विकसंत कोमल कमल मानहु अमल गंग तरंग मैं ॥१८॥ आनंद सों सुंदरिन के कहुँ बदन इंदु उदोत हैं। नभ सरित के प्रफुलित कुमुद मुकुलित कमल कुल होत हैं ।। कहुँ बावरी सर कूप राजत बद्धमनिसोपान हैं। जहँ हंस सारस चक्रवाक बिहार करत सनान हैं ॥१९॥ कितहूँ विसाल प्रवाल जालन जटित अंगनि भूमि है। जहँ ललित वागनि द्रुमलतनि मिलिरहै झिलमिलि झूमि है।। चंपा चमेली चारु चंदन चारिहू दिसि देखिए। लवली लवंग यलानि केरे लाखहो लगि लेखिए ॥ २०॥ कहुँ केतकी कदली करौंदा कुंद अरु करवीर हैं। कहुँ दाख दाडिम सेव कटहल तूत अरु जंभीर हैं। कितहूँ कदंब कदंब कहुँ हिंताले ताल तमाले हैं। १ पुष्पराग, पुरवराग अथवा पुखराज । २ झिलमिला ( हिलता हुआ) प्रकाश ३ कोमल वल्कला, नेवाड़ी, एक फूल वृक्ष । ४ एला; इलायची। ५ कनेर । ६ मुनका । ७ अनार । ८ समूह। ९ पूगरोट वृक्ष १० आवनूस ।