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पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/१०९

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भ्रमरगीत-सार
२४
 

यह मत लै तिनहीं उपदेसौ जिन्हैं आजु सब सोहत।
सूर आज लौं सुनी न देखी पोत[] सूतरी पोहत॥५३॥


राग जैतश्री

प्रेमरहित यह जोग कौन क़ाज गायो?
दीनन सों निठुर बचन कहे कहा पायो?
नयनन निज कमलनयन सुन्दर मुख हेरो।
मूँदन ते नयन क़हत कौन ज्ञान तेरो?
तामें कहु मधुकर! हम कहा लैन जाहीं।
जामें प्रिय प्राननाथ नँदनन्दन नाहीं?
जिनके तुम सखा साधु बातें कहु तिनकी।
जीवैं सुनि स्यामकथा दासी हम जिनकी॥
निरगुन अबिनासी गुन आनि आनि भाखौ।
सूरदास जिय के जिय कहाँ कान्ह राखौ? ॥५४॥


राग केदारो
जनि चालौ, अलि, बात पराई।

ना कोउ कहै सुनै या ब्रज में नइ कीरति सब जाति हिराई॥
बूझैं समाचार मुख ऊधो कुल की सब आरति बिसराई।
भले संग बसि भई भली मति, भले मेल पहिचान कराई॥
सुन्दर कथा कटुक सी लागति उपजत उर उपदेस खराई[]
उलटो न्याव सूर के प्रभु को बहे जात माँगत उतराई॥५५॥


राग मलार
याकी सीख सुनै ब्रज को, रे?

जाकी रहनि कहनि अनमिल, अलि, कहत समुझि अति थोरे॥


  1. पोत=माला की गुरिया।
  2. खराई=खारापन।