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भ्रमरगीत-सार
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बीती जाहि पै सोई जानै कठिन है प्रेम-पास को परिबो।
जब तें बिछुरे कमलनयन, सखि, रहत न नयन नीर को गरिबो॥
सीतल चंद अगिनि सम लागत कहिए धीर कौन बिधि धरिबो।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिनु सब झूठो जतननि को करिबो॥९९॥
अति मलीन बृषभानुकुमारी।
ऊधो! तुम हौ अति बड़भागी।
पहिले ही चढ़ि रह्यो स्याम-रँग छुटत न देख्यो धोय॥