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भ्रमरगीत-सार
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नँदनँदन बिन कपट कथा कहि कत अनरुचि उपजावत?
स्रक[१] चंदन तन में जो सुधारत कहु कैसे सचु पावत?
देखु विचारि तुहीं अपने जिय नागर है जु कहावत?
सब सुमनन फिरि फिरि नीरस करि काहे को कमल बँधावत?
कमलनयन करकमल कमलपग कमलबदन बिरमावत।
सूरदास प्रभु अलि अनुरागी काहे को और भुकावत[२]?॥२४९॥


राग धनाश्री

को गोपाल कहाँ को बासी, कासों है पहिंचान?
तुमसों सँदेसो कौन पठाए, कहत कौन सों आनि?
अपनी चाँड़ आनि उड़ि बैठ्यो भँवर भलो रस जानि।
कै वह बेलि बढ़ौ कै सूखौ, तिनको कह हितहानि॥
प्रथम बेनु बन हरत हरिन-मन राग-रागिनी ठानि।
जैसे बधिक बिसासि बिबस करि बधत विषम सर तानि॥
पय प्यावत पूतना हनी, छपि बालि हन्यो, बलि दानि।
सूपनखा, ताड़का निपाती सूर स्याम यह बानि॥२५०॥


मधुकर के पठए तें तुम्हरी व्यापक[३] न्यून परी।
नगरनारि[४]-मुखछबि-तन निरखत द्वै बतियाँ बिसरीं॥
ब्रज को नेह, अरु आप पूर्नता एकौ ना उबरी।
तीजो पंथ प्रगट भयो देखियत जब भेंटी कुबरी॥
यह तौ परम साधु तुम डहक्यो, इन यह मन न धरी।
जो कछु कह्यो सुनि चल्यो सीस धरि जोग-जुगुति-गठरी॥


  1. स्रक=माला।
  2. भुकावत=भुकाता है, बकवाद करता है
  3. व्यापक=व्यापकता।
  4. नगरनारि=मथुरा की नागरी स्त्रियों की।