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पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/१८०

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भ्रमरगीत-सार
 

हमसों तोसों बैर कहा, अलि, स्याम अजान ज्यों राहत।
झारि झूरि मन तो हरि लै गए बहुरि पयारहि[] गाहत[]
अब तौ तोहिं मरुत को गहिबो कह स्रम करि तू लैहै?
सूर कोट-मध्य तू ह्वै रह, अपनो कियो तू पैहै॥२६१॥


राग सारंग

मधुकर! आवत यहै परेखो।
जब बारे तब आस बड़े की, बड़े भए सो देखो!
जोग-जज्ञ, तप, दान, नेम-ब्रत करत रहे पितु-मात।
क्यों हूँ सुत जो बढ्यो कुसल सों, कठिन मोह की बात॥
करनी प्रगट प्रीति पिक-कीरति अपने काज लौं भीर।
काज सर्‌यो दुख गयो कहाँ धौं, कहँ बायस को बीर॥
जहँ जहँ रहौ राज करौ तहँ तहँ लेव कोटि सिर भार।
यह असीस हम देति सूर सुनु न्हात खसै[] जनि बार॥२६२॥


मधुकर! प्रीति किए पछितानी।
हम जानी ऐसी निबहैगी उन कछु औरै ठानी॥
कारे तन को कौन पत्यानो? बोलत मधुरी बानी।
हमको लिखि लिखि जोग पठावत आपु करत रजधानी।
सूनी सेज स्याम बिनु मोको तलफत रैनि बिहानी।
सूर स्याम प्रभु मिलिकै बिछुरे तातें मति जु हिरानी॥२६३॥


  1. पयार=पयाल, अनाज के पौधों के सूखे डंठल।
  2. गाहना=डंडे से उलट पलटकर झाड़ना
  3. खसै=टूटकर गिरे।