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भ्रमरगीत-सार
राग गौरी
मधुकर! जो हरि कही करैं।
राजकाज चित दयो साँवरे, गोकुल क्यों बिसरैं?
जब लौं घोष रहे हम तब लौं संतत सेवा कीन्ही?
बारक कहे उलूखल बाँधे, वहै कान्ह जिय लीन्ही॥
जौ पै कोटि करैं ब्रजनायक बहुतै राजकुमारी।
तौ ये नंद पिता कहँ मिलिहैं अरु जसुमति महतारी?
गोबर्द्धन कहँ गोपबृन्द सब, कहँ गोरस सद[५] पैहो?
सूरदास अब सोई करिए बहुरि हरिहि लै ऐहो॥२६७॥
राग बिलावल
मधुकर! भल आए बलवीर।
दुर्लभ दरसन सुलभ पाए जान क्यों परपीर?
कहत बचन, बिचारि बिनवहिं सोधियों उन पाहिं।
प्रानपति की प्रीति, ऊधो! है कि हम सों नाहिं?