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पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/१८२

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भ्रमरगीत-सार
 

रहे मूँदि कपाट पल[] दोउ, भए घूँघट-ओट।
स्वास कढ़ि तौ जात तितही निकसि मन्मथ फोट[]
स्रवन सुनि जस रहत हरि को, मन रहत धरि ध्यान।
रहत रसना नाम रटि, पै इनहिं दरसन हान[]
करत देह बिभाग भोगहिं, जो कछू सब लेत[]
सूर दरसन हीं बिना यह पलक चैन न देत॥२६६॥


राग गौरी

मधुकर! जो हरि कही करैं।
राजकाज चित दयो साँवरे, गोकुल क्यों बिसरैं?
जब लौं घोष रहे हम तब लौं संतत सेवा कीन्ही?
बारक कहे उलूखल बाँधे, वहै कान्ह जिय लीन्ही॥
जौ पै कोटि करैं ब्रजनायक बहुतै राजकुमारी।
तौ ये नंद पिता कहँ मिलिहैं अरु जसुमति महतारी?
गोबर्द्धन कहँ गोपबृन्द सब, कहँ गोरस सद[] पैहो?
सूरदास अब सोई करिए बहुरि हरिहि लै ऐहो॥२६७॥


राग बिलावल

मधुकर! भल आए बलवीर।
दुर्लभ दरसन सुलभ पाए जान क्यों परपीर?
कहत बचन, बिचारि बिनवहिं सोधियों उन पाहिं।
प्रानपति की प्रीति, ऊधो! है कि हम सों नाहिं?


  1. पल=पलक।
  2. फोट=उद्‌गार।
  3. हान=हानि।
  4. करत देह विभाग......लेत=जो कुछ एक अंग प्राप्त करता है उसका सुख सारे अंग बाँट लेते हैं
  5. सद=ताजा।