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पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/१८७

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भ्रमरगीत-सार
१०८
 

तटबारू उपचार-चूर[] मनो, स्वेद-प्रवाह पनारी[]
बिगलित कच कुस कास[] पुलिन मनो, पंक जु कज्जल सारी।
भ्रमर मनो मति भ्रमत चहूं दिसि, फिरति है अंग दुखारी॥
निसिदिन चकई-व्याज बकत मुख, किन मानहुँ अनुहारी।
सूरदास प्रभु जो जमुना-गति सो गति भई हमारी॥२७८॥

सुनियत मुरली देखि लजात।
दूरहि तें सिंहासन बैठे, सीस नाय मुसकात॥
सुरभी लिखी चित्र भीतिन पर तिनहिं देखि सकुचात।
मोरपंख को बिजन[] बिलोकत बहरावत कहि बात॥
हमरी चरचा जो कोउ चालत, चालत ही चपि[] जात।
सूरदास ब्रज भले बिसार्‌यो, दूध दही क्यों खात?॥२७९॥

राग मलार

किधौं घन गरजत नहिं उन देसनि?
किधौं वहि इंद्र हठिहि हरि बरज्यौ, दादुर खाए सेसनि[]
किधौं वहि देस बकन मग छाँड्यो, धर[] बूड़ति न प्रबेसनि।
किधौं वहि देस मोर, चातक, पिक बधिकन बधे बिसेषनि॥
किधौं वहि देस बाल नहिं झूलति गावत गीत सहेसनि[]
पथिक न चलत सूर के प्रभु पै जासों कहौं सँदेसनि॥२८०॥


  1. उपचार-चूर=औषध का चूर्ण।
  2. पनारी=धारा, बहाव।
  3. (तट के) कुस कास=मानों बिखरे हुए केश हैं।
  4. बिजन=बीजन, पंखा।
  5. चपि जात=दब जाते हैं।
  6. सेसनि=साँपों ने।
  7. धर=धरा, पृथ्वी।
  8. सहेसनि=सहर्ष।