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भ्रमरगीत-सार
 

नगर एक नायक बिनु सूनो, नाहिंन काज सबै सन।
सूर सुभाय मिटत क्यों कारे जिहि कुल रीति डसै सन॥३०१॥


यहि डर बहुरि न गोकुल आए।
सुन री सखी! हमारी करनी समुझि मधुपुरी छाए॥
अधरातिक तें उठि बालक सब मोहिं जगै हैं आय।
बिनु पदत्रान बहुरि पठवैंगी बनहिं चरावन गाय॥
सूनो भवन आनि रोकैगी चोरत दधि नवनीत।
पकरि जसोदा पै लै जैहैं, नाचति गावति गीत॥
ग्वालिनि मोहिं बहुरि बाँधैंगी केते बचन लगाय।
एते दुःखन सुमिरि सूर मन, बहुरि सहै को जाय॥३०२॥


तब तें बहुरि न कोऊ आयो।
वहै जो एक बार ऊधो पै कछुक सोध सो पायो॥
यहै बिचार करैं, सखि, माधव इतो गहरु क्यों लायो।
गोकुलनाथ कृपा करि कबहूँ लिखियौ नाहिं पठायो॥
अवधि आस एती करि यह मन अब जैहै बौरायो।
सूरदास प्रभु चातक बोल्यो, मेघन अम्बर छायो॥३०३॥


राग धनाश्री

मेरो मन मथुराइ रह्यो।
गयो जो तन तें बहुरि न आयो, लै गोपाल गह्यो॥
इन नयनन को भेद न पाया, केइ भेदिया कह्यो।
राख्यो रूप चोरि चित-अन्तर, सोइ हरि सोध लह्यो[१]


  1. सोध लह्यो=पता पा गए कि मेरी मूर्ति राधा के हृदय में है।