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भ्रमरगीत-सार
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राग सारंग
राग मलार
ऐसे माई पावस ऋतु प्रथम सुरति करि माधवजू आवै री।
बरन बरन अनेक जलधर अति मनोहर बेष।
यहि समय यह गगन-सोभा सबन तें सुबिसेष॥
उड़त बक, सुक-बृन्द राजत, रटत चातक मोर।
बहुत भाँति चित हित-रुचि[३] बाढ़त दामिनी घनघोर[४]॥
धरनि-तनु तृनरोम हर्षित प्रिय समागम जानि।
और द्रुम बल्ली बियोगिनी मिलीं पति पहिचानि॥
हस, पिक, सुक, सारिका अलिपुंज नाना नाद।
मुदित मंगल मेघ बरसत, गत बिहंग-बिषाद॥
कुटज, कुन्द, कदम्ब, कोबिद[५], कर्निकार[६], सु कंजु।
केतकी, करबीर[७], चिलक[८] बसन्त-सम तरु मंजु॥