पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२३२

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(६)

गोद। खटकती है=कसकती है। [१४१] नए=झुके। उनतें=उनसे बढ़कर या बड़ा। [१४२] बकसियो=क्षमा करना। बौर=मंजरी। [१४३] तन=ओर। धौं=तो। परमारथ =परमार्थ रूपी औषध। राजदोष=प्रबल रोग। [१४४] अनुदिन=प्रतिदिन। [१४६] दे गए=दिए हुए गए। [१४७] बापुरे=बेचारे। छार=धूल। [१४८] आयसु=आदेश, आज्ञा। वारि॰=निछावर करके। नव॰= नौ टुकड़े करके, टुकड़े टुकड़े करके। [१४९] तर=नीचे। सचु=सुख। [१५१] सुखेत=रणक्षेत्र। बारि=पानी; चमक। [१५२] बाय=वात-विकार। पयनिधि=समुद्र। [१५३] अरे=अड़ गए हैं। राचे=अनुरक्त। वक्र॰=अत्यंत टेढ़े। सीतल=जिनके संचार (ध्यान) से हृदय ठंढे हो गए हैं। अमिय॰=अब ये अमृत से विष में जा पड़े। [१५४] बढ़वत॰=उसकी ओर काला सर्प क्यों बढ़ाते हो। हारे=विवश होने पर। अछत=रहते। [१५५] फूलेल=सुगंधित तेल। ग्रंथैं=गाँठें। आघोरी=भारी। ताटंक=कान का गहना। जोति=शोभा। सार=घनसार, कपूर, असवास=(आश्वास) सुगंधित साँस। आक=(अर्क) मदार। [१५६] अधिकारे=अधिक। सारे=तत्व। खारे=कडुए। [१५७] बायस=कौआ। अँचयो=पिया। बजी॰=एक ही ढंग के बाजे बजे, सब एक ही रंगत के हैं। ताँति=तंत्री, बाजा। [१५९] कनियाँ=गोद। [१६०] कलेवर=शरीर। खौरी=लेप। पिछौरी=दुपट्टा। [१६१] ज्यों भुवंग॰=जैसे उस सर्प की फूँक जिसकी मणि छीन ली गई हो। दवा=भीषण ज्वाला। [१६२] अंबर=अच्छे वस्त्र। गुरु॰=जो योग के हमारे गुरु हैं वे कुब्जा के हाथ की माला हैं। उसके इशारे पर नाचनेवाले हैं। [१६३] दाम=रस्सी। पानि=हाथ। चोरी॰=चोरी न खोलूँगी। आनि=आकर। हठिहौं=न देने का हठ न करूँगी। जावक=महावर। बट-तर=बरगद के नीचे। सँकेत=संकेतस्थल। चढ़ाय=बैठाकर। [१६७] निरखि॰=उसे देखकर अश्रु की अखंड धारा बहने लगी। प्रेम॰=प्रेम की व्यथा फिर भी न