पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२३५

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स्वाती [२२२] निसि लौं=रात भर। सीति=शीत, ठंढा। पुरवा=पूर्व से आनेवाली वायु, पुरवैया। गए॰=उसने हमारे शरीर सरलता से जीत लिए हैं। [२२३] चौरासी=अनेक प्रकार की। हरि=हरकर। [२२४] लोकडर॰=हमारा प्रेम प्रकट करने से श्रीकृष्ण को लोकापवाद का भय है (लोग कहेंगे कि ये गँवारों के साथ रहते थे।) [२२५] सो कुल=वह वंश (यादवों का), जिससे जन्म लेने पर बिछुड़ गए थे। गर्ग॰=गर्ग ने कहा था कि श्रीकृष्ण मथुरा और फिर द्वारका में जा बसेंगे। जो कुल=वह सब। ज्ञाति=जाति। [२२६] अनहद=अनाहत नाद। कुष्मांड=कुम्हड़ा। अजा=बकरी। अघाना=तृप्त होना। [२२७] न परानी=नहीं हटी। चलमति=चंचल बुद्धिवाला। घेरि॰=छेंकते फिरते हैं। [२२८] पति=प्रतिष्ठा दुरहु=हटो। बसीठ=दूत। मति-फेरी=बुद्धि का फेर। कै सँग=मिलकर; जुड़कर। श्री निकेत॰=शोभा के घर। पानि=हाथ में। बिषान=सींग। [२३०] नवतन=(नूतन) नए ढंग से। राचे=अनुरक्त हुए। रनछोर=श्रीकृष्ण [२३१] कारे=काले; मालिन, कपटी [२३४] ऐन=घर। [२३५] कोय॰=कौन स्त्री थी। राजपथ=राजमार्ग (भक्ति का चौड़ा मार्ग)। उरझ=उलझानेवाला। कुबील=ऊबड़-खाबड़, ऊँचा-नीचा। अज=बकरा। बदन=मुख। [२३६] कुमोदिनि=कुईं। जलजात=कमल। घनसार=कपूर। जीरन=जीर्ण, पुराना [२३७] बिदमान=विद्यमान, उपस्थित। [२३८] स्यंदन=रथ। बाय॰=वात-व्याधि से पगली सी होकर। [२३९] कुम्भ=घड़ा। जलचरी॰=बेचारी मछली। [२४१] धूरि=मिट्टी, व्यर्थ [२४३] कुबजा=कूबरी के प्रेम में मतवाले! लेस=थोड़ा भी। हरिखंड=मोरपंख। स्यामा=षोडशवर्षीया युवती स्त्री, राधिका। कछु॰=सुध-बुध खो गई। प्रबाल=नए निकले कोमल पत्तों की भाँति। ततछन=तत्क्षण, तुरन्त। सुहेस=मंगल। सुरेस=इन्द्र। रस=आनन्द से