पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२३६

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भ्रमित गतिवाले होकर, आनन्द में मग्न होकर। सेस=शेषनाग। [२४४] अङ्गराज=सुगन्धित लेप। मेदिनी=भूमि। [२४६] बरन=वर्ण, रंग। बाने=ढंग के। मीड़ी=मलकर। [२४७] समतूलहु=समान। [२४८] बास॰=वासस्थान। मन्दे=मन्दे बाजार में। [२४९] कहु॰=उसे भस्म लगाने से कैसे सुख मिलेगा। [२५०] चाँड़=अभिलाष। बिसासि=विश्वासघाती। तीजो पंथ=तीसरा पन्थ (मुरारेस्तृतीयः पन्थाः)। यह=ऊधो। साधु=सज्जन, सीधा। [२५२] कटु=कड़वी। अङ्गनिधि॰=श्रीकृष्ण के सगुणरूप के समुद्र से। अनमिल=बेमेल (निर्गुण)। अमोलत=अमूल्य या बहुमूल्य ठहरा रहे हो (सगुण से निर्गुण को बढ़कर बतला रहे हो) [२५३] अतीत=परे। [२५५] स्याम-तन॰=श्रीकृष्ण की ओर देखकर, उनका विचार करके। [२५६] बारे=बालपन से ही। [२५७] अगाऊ=आगे आगे। [२५८] कचोरा=कटोरा। ताटंक, खुभी, खुटिला=कान के गहने। फूली=फूल, लौंग (गहना)। सारी॰=कमल और चन्द्र से अंकित साड़ी। सारस=कमल। गूदर=फटी। [२५९] भेद=पता न चला। बदन को=कहने के लिए, निश्चित करने। बायु॰=प्राणायाम। ताए=तपाए। [२६०] सँचि॰=एकत्र कर रखी थीं। छार=धूल। सरवरि॰= कूबरी के योग्य। घटी॰=बुरा किया। हम जोही=हमें देखते रहे, हमें ग्राहक समझते रहे। [२६१] राहत=रहते हैं। कोट=बाँस की कोठी। [२६२] परेखो=पछतावा। बारे=छोटे। भीर=संकट, कष्ट, कठिनाई। सर्‌यो=पूरा हुआ। बायस॰=कौए का भाई, कौआ। [२६३] पत्यानो=विश्वास किया। [२६४] करसायल=मृग। अबिधि सों=अन्याय से। [२६५] सूर=शूर, वीर; सूरदास। [२६७] बारक=एक बार। [२६८] सोधियो॰=उनसे पूछना। घात=हत्या। [२६९] ज्यों॰=जैसे माता अपने जने बच्चे का पालन करती है। [२७०] गुरु॰=गुड़