पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२३७

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दिखाकर बहलाओ। कोऊ॰=किसी प्रकार। [२७१] अन्तरमुख=भीतर। पांडु॰=कामला रोग जिसमें शरीर पीला पड़ जाता है। उजरो=उजड़ा हुआ। छपद=भ्रमर। [२७२] मदिरा॰=शराब पीकर। पराग०=पराग की पीक की रेखा। कुंभ॰ 'विषकुंभं पयोमुखम्', विष का भरा घड़ा, जिसमें ऊपर दूध हो। उघारे=खोले। कृत कर्म से। [२७४] पुहुप=पुष्प। नेरे=निकट। [२७५] पिछौं हैं=पीछे की ओर। उर॰=जब छाती छेदकर पीछे जा निकले। पाछे॰=पीछे हटते हुए भागे नहीं। कबंध=धड़। संमुख॰=सामना करने, भिड़ने के लिए। [२७६] चिहुर=चिकुर, केश। यह॰=इस प्रकार से। नयन॰=नेत्रों की इच्छा पूर्ण करते हुए। बटमारे=डाकू, चोर। [२७७] कागर=कागज, पत्र। [२७८] पंक॰=कीचड़ ही मैली साड़ी है। ब्याज=बहाने से। अनुहारी=समता। [२७९] भीति=दीवार। [२८०]= हठिहि=हठपूर्वक। प्रबेसनि=जल की धारा के प्रवेश से। बिसेषनि=विशेष रूप से। [२८१] धावन=दूत। कहा॰=क्या वश है। बल=बलदाऊ। [२८२] दादुर॰=माना जाता है कि वर्षा के प्रथम जल से मरे हुए मेढक जी उठते हैं। निबिड़=घना। [२८३] सारँग=चातक। सूरमा=वीर। [२८४] खरे=तीव्र। [२८५] इते मान=इतना अधिक। अन्त=मार मत डालो। [२८६] सिंधुतीर=द्वारका में। [२८७] बयन=बचन, बोली। भीषम=भीष्म पितामह की भाँति। डासि= बिछाकर। दच्छिन॰=भीष्म पितामह जब युद्ध में घायल हुए तब सूर्य दक्षिणायण थे, उत्तरायण होने पर उन्होंने प्राण त्यागे। उन्हें इच्छामरण का वरदान था। [२८८] निमेष॰=पलकरूपी तट। गोलक=पुतली। तट=ओठ और कपोल ही तट का मैदान हैं। [२८९] पोच=बुरा (सोच का विशेषण)। [२९०] एक अङ्ग=(एकांग) केवल, निरन्तर। ज्यों मुख॰=जब वह पूर्ण मुखचन्द्र सामने था। रई=रँगी, डूबी। सकति=शक्तिभर। [२९१] सारि=