पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१३)

सायक=बाण। दवा=दावाग्नि। [३४१] अभास्यो=प्रकाशित हुआ। सुमन=सुगंधित तेल, फुलेल। रहि=रुके नहीं। निरंजन=निर्लिप्त। सलभ=फतींगे। करम की=उत्तम। [३४३] धार बही=तलवार चली। [३४८] परी=गिरी, पृथक् हुई। बहिबो=बहना, नहीं रुकता। उपचारै॰=हमारा क्या उपचार हो, कष्ट किस प्रकार दूर हो। [३४९] आसी=खाने वाले। [३५०] आहु=हो। भोरो=ठगते हो। साहु=साधु, महाजन, वणिक्। [३५१] चारी=चारों मुक्ति (सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य, सारूप्य) मारग॰= रास्ते पर आइए। [३५५] ही=थी। छपद-भ्रमर। दई=ईश्वर का भी डर नहीं। [३६०] सुसारना=समझाकर कहना [३६२] कुसुँभ=हलका लाल। करनि=अपने हाथों। [३६४] दोष=जोड़ की त्रुटि। काँजी=खट्टा। दिगम्बर=नंगे लोग। रजक=धोबी। [३७१] नँदलाल॰=श्रीकृष्ण से। ही=थी। ढही=गिर पड़ी। [३७५] तातो=तप्त, गरम! करम॰= धीरे धीरे, क्रमशः। [३७६] आगो लेना=सेवा करना। राम=बलराम। [३७७] गिरहिनी=गृहिणी, पत्नी (देवकी)। परिधान=वस्त्र। [३७९] बिकट=टेढ़ी। कल=मधुर। उडुगन=तारे। पदिक=माला में बोचोबीच का बड़ा गहना। दारा=पत्नी। राम॰=रामजन्म के तपस्वी, रामावतार में तपस्या की थी। मोट=गठरी। [३८०] ब्याज=बहाने से। हम॰=मुझ दाल का वश नहीं चलता। [३८२] नेरो=निकट। बेरो=बेड़ा, नाव। [३८४] बायस=कौए को वे पति के आगमन का शकुन विचारने के लिए उड़ा देती हैं। [३८५] कस=कैसा। फेरि॰=बेसुध हो जाना पड़ता है। [३८७] छाक=कलेवा। [३८८] परिहस=खेद। [३८९] अगाऊँ=पहले ही। कंथा=कथरी, गुदड़ी। षटदरसी=षट्शास्त्री, छहों शास्त्रों का ज्ञाता। [३९१] बार न॰=गोपियों को सिखा-पढ़ाकर लौटने में उसे देर न लगेगी, मुझे तो देर लगी। [३९२] खरिक=गायों के रहने का स्थान, गोशाला। जाहीं=जिसमें। निबाहीं=निर्वाह किया, सहा।