पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१८५

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समीक्षा

समीक्षा १८१ ऊधो, तुम कहत, बियोग तजि जोग करौ, जोग तब करें, जो बियोग होय स्याम को।" (मतिराम) (३) दोनो कवियों की वचन-विदग्धाओं का भी एक-एक उदा- हरण लीजिए। गोपिका बहाने के साथ श्रीकृष्ण को एकांत स्थल में ले जाना चाहती है। एक कवि गो-दोहन-कार्य का आश्रय लेकर और दूसरा जंगल में खोए हुए बछड़े को ढूंढने का कथन करके इस भाव को दिखलाता है । एक छंद में सूर्योदय के पहले ही जाकर गोपिका कृष्णचंद्र से गोदोहन के लिये कहती है, तथा दूसरे में संध्या-समय बछड़े के ढुंढ़ाने की प्रार्थना है। दोनो ही उक्तियाँ परम रसीली हैं। लेखक की राय में मतिराम की उक्ति में कुछ स्वाभाविकता विशेष है- "ननंद उठाई, उन सोवत उठाई सासु, पेलिकै पठाई अधरातक अँध्यारेई; रैहौं ना बिठाई, हौंही जाऊँगी पठाई तुम्हैं, उत वै हठीलो हठ मोहीं सो पसारेई । पीतंबर खोलौ, मुख देखौ हौं तिहारो नेक, देखो, भोर भयो जू बनगो पगु धारेई; चोखी जाति गैया, कोई और न दुहैया 'देव', देवर कन्हैया कहा सोवत सवारेई ।" (देव) "आई कै निपट साँझ, गैया गई घर माँझ, _हाँत दौरि आई कहै मेरो काम कीजिए; हौं तौ हौं अकेली और दूसरो न देखियत, बन की अँध्यारो सों अधिक भय भीजिए। _-_कबि 'मतिराम' मनमोहन सों पुनि-पुनि राधिका कहति बात साँची के पतीजिए;