पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३४९

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३४५
रसराज

रसराज ३४५ अनमिष लोचन बाल के, यात नंदकुमार ! मीच गई जरि बीच' ही, बिरहानल की झार ॥४२६।। कवि-निवेदन समुझि समुझि सब रीझिहैं, सज्जन सुकबि समाज । रसिकन के रस को कियौ, नयो ग्रंथ 'रसराज' ॥४२७॥ • १ बीज। छं० नं० ४२६ मीच विरहाग्नि की तीव्रता में मत्यु बीच में ही जलकर रह गई। अप-कराया गया और न ही