पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३८१

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३७७
ललितललाम

BR EARSPERAICH ललितललाम ३७७ कहै 'मतिराम' नभ-नदी के कुसुम' सम, उड़े उड़गन सुंड अनिल उड़ाए लें। मदजल-धार बरषत जिमि धाराधर, धक्कनि सौं धुक्करै धरनिधर धाए तें; आवै कबिराज ऐसे पावै गजराज राव, भाव सतासुत सौं अगार गुन गाए तें ॥१२९॥ प्रथम तुल्ययोगिता-लक्षण जहाँ अवर्ण्यन को धरम, कै बर्ण्यन को एक । तुल्ययोगिता कहत हैं, तहाँ सुबुद्धि बिबेक ॥१३०॥ ___अवर्ण्य का उदाहरण सूबनि कौं मेटि दिल्ली देस दलिबे कौं चमू, ___सुभट समूहनि सिवा की उमहति है; कहै 'मतिराम' ताहि रोकिबे कौं संगर मैं, काहूके न हिम्मति हिए में उलहति है। सत्रुसाल-नंद के प्रताप की लपट सब, _गरबी गनीम बरगीन कौं दहति है; पति पातसाह की इजति उमरावन की, राखी रैया राव भावसिंह की रहति है ॥१३१॥ ___ वर्ण्य का उदाहरण अभिनव जोबन-जोति सौं, जगमग होत बिलास । तिय के तन पानिप बढ़े, पिय के नैननि प्यास ॥१३२॥* १ कुमुद, २ धुक्कत, ३उमेडि, ४ पातसाही। धक्कनि सौं धुक्करै धरनिधर=शेषजी धक्का लगने से कसमसा उठते हैं। अगार-अगाड़ी पहले ही । छं० २० १३१ सूबनि=सूबों को (प्रांतों को) या सूबेदारों को । गरबी गनीम बरगीन=अभिमानी शत्रु-मंडल ।

  • देखो रसराज उदाहरण मुग्धा ।