पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३९१

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३८७
ललितललाम

ललितललाम ३८७ व्याजस्तुति-लक्षण निंदा मैं स्तुत पाइए, स्तुति मैं निंदा होय । ब्याजस्तुति सो कहत हैं, कबि-कोबिद सब कोय ॥१८२॥ उदाहरण देखत ही सबके चुरावती' है चित्तनि कौं, फेरि न देती यौं अनीति उमड़ाई है; कबि 'मतिराम' काम तीर ह तें तीछन, कटाछनि की कोरै छेदि छाती मैं गड़ाई है। खंजरीट-कंज-मीन, मृगनि के नैननि की, छीनि-छी नि लेती छबि ऐसी तें लड़ाई है; तेरी अखियानि मैं बिलोकी यह बड़ी बात, इते पर बड़ी-बड़ी पावती बड़ाई है ॥१८३॥ याही कौं पठाई बड़ो काम करि आई बड़ी, तेरी ये बड़ाई लखै लोचन लजीले सों; साँची क्यों न कहै कछ मोकौं किधौं आए ही कौं, पाय बकसीस लाई बसन छबीले सों। 'मतिराम' सुकबि संदेसो अनुमानियत, तेरे नख सिख अंग हरख कटीले सों; तू तो है रसीली रस-बातनि बनाय जानें, मेरे जानि आई रस राखि कै रसीले सों॥१८४॥* व्याज-निंदा-लक्षण निंदा सों जहँ और की निंदा प्रगटित होय । तहाँ ब्याज-निंदा कहत कबि कोबिद सब कोय ॥१८॥ १ चुरावत, २ एते, ३ ऐसो, ४ सो, ५ यह ।

  • देखो रसराज उदाहरण अन्यसुरतिदुःखिता।