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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४१५

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ललितललाम

प्रथम प्रहर्षण - लक्षण

जहँ उत्कंठित अर्थ की बिन उपाय ही सिद्धि ।
तहाँ प्रहर्षन कहत हैं जे कबिजन मतिसिद्धि ३०२ ,।।

उदाहरण।।

स्याम बसन मैं स्याम निसि दुरी न तिय की देह । :पहुँचाई चहुँ ओर घिरि भौंर-भीर पिय-गेह ॥ ३०३ ॥
मनभावन के ब्याह की' सुनी सलौनी बात ।
आंगी मैन' उरोज अरु आनँद उर न समात ॥ ३०४ ॥

द्वितीय प्रहर्षण लक्षण

जहँ मनइच्छित अर्थ ते अधिक सिद्धि ' मतिराम' । :तहाँ प्रहर्षन औरऊ बरनत मति अभिराम ॥ ३०५ ॥

उदाहरण

चाहत सत पावत सहस, पावत हय चाहि ।
भावसिंह यौं दानि है, जगत सराहत जाहि ॥ ३०६ ॥ :चित्र मैं बिलोकत ही लाल को बदन बाल,
जीते जिहिँ कोटि चंद सरद पुनीन के
मुसकानि अमल कपोलनि के रुचिबूंद,
चमकै तरयोननि के रुचिर चुनीन के
पीतम निहारो बाँह गहत अचानक ही,
जामैं 'मतिराम' मन सकल मुनीन के
गाढ़े ही लाज मैं न कंठ ह्वै फिरत बैन,
मूल छ्वै फिरत नैन बारि-बरुनीन के ॥ ३०७ ॥*

१ सों, २ अँगिया में न ।

  • देखो रसराज उदाहरण मध्या ।