पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४१७

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४१३
ललितललाम

ललितललाम ४१३ दोष से दोष-उदाहरण मंत्रिन के बस जो नृपति, सो न लहत सुखसाज़ । मनहि बाँधि दृग देत हैं, मन कुमार कौं राज ॥३१४॥ गुण से दोष-उदाहरण दुख न मानि जो तजि चल्यो, जानि अँगार गँवार । छितिपालन की माल मैं, तैं ही लाल सिँगार ॥३१॥ दोष से गुण-उदाहरण दधि छुड़ाय मोहन लियो सखी, सघन बन ठौर । बड़ो लाभ मन मैं गुन्यौं जो न कियो कछु और ॥३१६॥ अवज्ञा-लक्षण औरै के गुन दोष ते औरै के गुन दोष । जहँ न अवज्ञा तहँ कहत कबिजन बुद्धि अदोष ॥३१७॥ उदाहरण रावरे नेह को लाज तजी अरु गेह के काज सबै बिसराए ; डारि दिए गुरु लोगनि को डर गाँव चवाय मैं नाव धराए । हेत कियो हम जो तो कहाँ तुम तौ 'मतिराम' सबै बहराए; कोऊ कितेक उपाय करौ कहँ होत है आपने, पीव पराए । ३१८॥ मेरे दुग बारिद बथा, बरषत बारि प्रबाह ।। उठत न अंकुर नेह को, तो उर ऊसर माह ॥३१९॥ छं० नं० ३१४ भावार्थ---जो राजा मंत्रियों के वश में रहते हैं उन्हें सुख नहीं मिलता । देखो मन नेत्रों के वश में था सो उन्होंने उसको बाँधकर उसके कुमार मनोज को राज्य दे दिया है। देखो रसराज-परकीया खंडिता उदाहरण तथा ललितललाम, अर्थांतरन्यास। देखो रसराज उदाहरण शिक्षा ।