पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२६७

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(२००) चाय १७० Par 7.1 7777 ;8; ; *vidt 19:7777, 71897 मी कायंगरी गुफा 15?; in1,11 *!; द्वारा प्रशंसा from 2:1:11 1921:12; Banho नयारान्त 1.Fraft 10:- (en चित्रशाला 517 7.17.777 77911; 17:1---175:-717, Fern i ja चुनाव सार्वजनिक १२ महाराष्ट्री-राष्ट्रीयन गा मुंगी कर १५८ ravi- 971-717 7! घोल १३, १४ laia :: छंदःशारा-चो भकार नमान: जागीमाग-- पं. जि. छंदोबद्ध लेरा-टनकी प्रगुरता मारमाही सारगियों इतछात 1~का अभाव, भिन्न भिन्न वों में ५० पानिपद का एक ग 10२, जंगम २४ गये। मं-(दिन-रात होने का जयदेव-कृत गीतगोविंद ७७ कारगा) १०२, फलित ज्योतिष १०६, 10७; 'मलयेनी द्वारा जयसिंह-(सिद्धराज) बल्लंग 10पीर में प्रचार जलविहार-५२ १०६, प्रोफेसर विल्सन का मत जातकमाला -का अध्ययन ११५ १०६; भारतीय पार यूनानी जाति-पर हुएन्संग का मत-१७ ज्योतिगही समानता 1०३गरात्र जातिभेद-बड़ने के कारण ४३;- श्रीर कालनिर्णय का मान १०२; का अभाव, क्षत्रिय वर्ण में १६ भारतीय ज्योतिषियों का परय जाति-अस्पृश्यों में, चाण्डाल सार में बुलाया जाना १०६; लल मृतप ४८; शूद्रों की-, पेशों का ललसिद्धांत १०४; वृद्धगर्ग के अनुसार ४७; उपनामा संहिता, ज्योतिष पर नध १०३; का जातियों में परिणत होना सुरीयपति, ज्योतिष ४३ ग्रंथ १०३; सूर्यसिद्धांत १०३; जादू टोना-प्रभाकरवर्धन की बीमारी उस के चार भाग १०५; सिंहा- में बाण का वर्णन ६१,-पर चार्य ज्योतिर्विद १०३; सिंह जगन्नाध१६ पर