पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१२७

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( १२२ ) (१) संज्ञा के जिस रूप से वाक्य की क्रिया के करने- वाले का बोध होता है, उसे कर्त्ता कारक कहते हैं; जैसे, लड़का सोता है। नौकर ने दरवाज़ा खोला। [सूचना--'ने" के प्रयोग के लिए अं०-३०४ देखो। (२) जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता । है, उसे सूचित करनेवाले संज्ञा के रूप को. कर्म कारक ___ कहते हैं; जैसे, "लड़का पत्थर फेंकता है।" "मालिक ने नौकर को बुलाया ।" जब कर्म अप्राणिवाचक वा अनिश्चित होता है, तब "को” चिह्न बहुधा लुप्त रहता है। (३) करण कारक संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे क्रिया के साधन का बोध होता है; जैसे, "सिपाही चोर को " रस्सी से बाँधता है।" "लड़के ने हाथ से फल तोड़ा।" (४) जिस वस्तु के लिए कोई क्रिया की जाती है, उसकी वाचक संज्ञा के रूप को संप्रदान कारक कहते हैं; जैसे, "राजा ने ब्राह्मण को धन दिया।" "लड़का नहाने को गया है।" (५) अपादान कारक संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे क्रिया के विभाग की अवधि सूचित होती है; जैसे, "पेड़ से फल गिरा ।" "गंगा हिमालय से निकलती है।" (६) संज्ञा के जिस रूप से उसको वाच्य वस्तु का संबंध . किसी दूसरी वस्तु के साथ सूचित होता है, उस रूप को संबंध कारक कहते हैं; जैसे, राजा का महल, लड़के की