पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/२०३

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( १९८ ) ई-यह प्रत्यय कई एक संज्ञाओं में लगाने से विशेषण बनते हैं; जैसे, भार-भारी, ऊन-ऊनी, देश-देशी। (अ) कई एक प्रकारांत या श्राकारांत संज्ञाओं में यह प्रत्यय · लगाने से जनवाचक संज्ञाएं बनती हैं; जैसे, पहाड़-पहाड़ी, घाट- घाटी, ढोलकी, डोरी, टोकरी, रस्सी। (श्रा) किसी किसी विशेषण वा संज्ञा में यह प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञाएं बनाते हैं; जैसे, सावधान-सावधानी, गरीब- गरीबी, चोर-चोरी, खेत-खेती । ईला--इस प्रत्यय के योग से विशेषण बनते हैं; जैसे, रंग-रंगीला,-छबि-छबीला,लाज-लजीला,रस-रसीला । ऊ--इस प्रत्यय के योग से विशेषण बनते हैं; जैसे, ढाल- डालू, घर-घरू, बाजार-बाजारू, पेट-पेटू, गरज-गरजू । एरा--(व्यापारवाचक)--जैसे,साँप-सँपेरा, काँसा--कसेरा। (संबंधवाचक-जैसे, मामा-ममेरा, फूफा-फुफेरा ।) ऐला-(गुणवाचक)-जैसे, बन-बनैला, धूम-धुमैला। औती-(भाववाचक)-बाप-बपौती, बूढा-बुढ़ौती । क-(अव्यय से संज्ञा )-जैसे, धड़-धड़क, भड़- भड़क, धम-धमक। पन-(भाववाचक)-जैसे, काला-कालापन, पागल-- "पागलपन । पा-(भाववाचक)-बूढा-बुढ़ापा, राँड-रडापा। रो-(अनवाचक )-कोठा-कोठरी, छत्ता--छतरी।