पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/३६

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(ख) विशेषण से -- जैसे, गरमी, सरदी, कठोरता, मिठास, बड़- प्पन, चतुराई, धैर्य।

(ग) क्रिया से -- जैसे, घबराहट, सजावट, चढ़ाई, बहाव, मार, दौड़, चलन।

८२ -- जब व्यक्ति-वाचक संज्ञा का प्रयोग एक ही नाम के अनेक व्यक्तियों का बोध कराने के लिए अथवा किसी ब्यक्ति का असाधारण धर्म सूचित करने के लिए किया जाता है, तब व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक हो जाती है; जैसे, "कहु रावण, रावण जग केते।" "राम तीन हैं।" "यशोदा हमारे घर की लक्ष्मी है।"

८३ -- कुछ जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के समान होता है; जैसे, पुरी = जगन्नाथ, देवी = दुर्गा, दाऊ = बलदेव, संवत् = विक्रमी संवत्।

८४ -- कभी कभी भाववाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है; जैसे, "उसके आगे सब रूपवती स्त्रियाँ निरादर हैं।" इस वाक्य में "निरादर" शब्द से "निरा-दर योग्य स्त्री" का बोध होता है। "ये सब कैसे अच्छे पहिरावे हैं।" यहाँ "पहिरावे" का अर्थ "पहिनने के वस्त्र" है।

संज्ञा के स्थान में आनेवाले शब्द

८५ -- सर्वनाम का उपयोग संज्ञा के स्थान में होता है; जैसे, मैं (सारथी) रास खींचता हूँ। यह (शकुंतला) वन में पड़ी मिली थी।