पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/८८

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( ८५ ) .: (अ) अधिकतावाधक-बहुत, अति, . वड़ा, भारी, बहुतायत से, बिलकुल, सर्वथा, निरा, खूब, पूर्णतया, निपट, अत्यंत । (आ) न्यूनताबोधक-कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, अनु-- मान, प्राय:, जरा, किंचित् । ___(इ) पर्याप्तिवाचक-केवल, वस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बरावर, ठीक, अस्तु । ___(ई) तुलनावाचक-अधिक, कम, इतना, उतना, जितना,, कितना, बढ़ कर, और। (उ', श्रेणीवाचक-थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एक-करके, यथाक्रम । १६१-रीतिवाचक क्रिया-विशेषणों की संख्या गुणवाचक विशेषणों के समान बहुत अधिक है। इस वर्ग में उन सब क्रिया-विशेषणों का समावेश किया जाता है जिनका अंतर्भाव पहले कहे हुए वर्गों में नहीं होता। रीतिवाचक क्रिया-विशे-. षण नीचे लिखे हुए अर्थो में आते हैं। (अ) प्रकार-ऐसे, वैसे, कैसे, तैसे, मानो, धोरे, अचा- नक, वृथा, सहज, साक्षात्, सेंतमेंत, योंही, हौले, पैदल, जैसे- तैसे, स्वयं, परस्पर, आपही आप, एक-साथ, एकाएक, मन से, भ्यानपूर्वक, संदेह। .. (आ) निश्चय-अवश्य, सहो, सचमुच, नि:संदेह, बेशक, ज़रूर, मुख्य: करके, विशेष करके, यथार्थ में। .