पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४०९

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४०६ मनुस्मृनि मापानुवाद इह चानुचमां कीर्ति वागेषा ब्रमपूजिता ॥१॥ साच्चेऽनृतं वदन्पाशैर्बध्यते वारुणभृशम् । विवश शतमाजातीस्तस्मात्साच्यं वदेह नम् ॥८२। साक्ष्य कर्म मे सच बोलता हुआ साक्षी उत्कृष्ट (ब्राह्मादि) लोको और इस लोक मे उत्तम कीति को प्राप्त होता है क्योकि यह सत्य वाणी ब्रह्मवेद से पूजी हुई है ॥८१|| क्योकि साक्ष्य में असत्य कहने वाला वरुण के पाशो से परतन्त्र हुआ शत जन्म पर्यन्त अत्यन्त पीड़ितहावाहै (अर्थात् जलारादिसे पीड़ित) इस कारण सन्चा साक्ष्य (गवाही) दे ।। (८२वें सेागे ३ श्लोक अधिक पाये जातेहैं। जिनमें से पहिला और तीसरा एक पुस्तक में औरदूसरा तीन पुस्तको मे मिलता है [ब्राह्मणोनै मनुष्याणामादित्यस्तेजसां दिवि । शिरोधा सर्वगात्राणां धर्माणां सत्यमुत्तमम् ॥१॥ नास्तिसत्पात्सरो धर्मो नानृतात्पातकं परम् । सातिधर्मे विशेषेण तस्मात् सत्यं विशिष्यते ॥२॥ एकामेवाऽद्वितीयं तु प्रत्रु बनावबुध्यते । सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावारस्य नौरिव ॥३॥ जैसे मनुष्यों में ब्राह्मण, आकाश के तारागणो मे सुर्य और अन्य सब अङ्गो मे शिर (ऐसा ही) धमों मे सत्य उत्तम है ।।१।। सत्य से बढकर धर्म नहीहै असत्य से बढकर पाप नही । विशेषकर साक्षी के धर्म में। इस कारण सत्य उत्तम है। जो एक सत्य ही कहता है दूसरी बात नहीं कहता वह भूलता नहीं । सत्य स्वर्ग की सीढी है, जैसे समुद्र मे नौका ॥३) INCOM