पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१०५

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(६६ ) यह सब ले क्यों नहीं जाते ?" "यह भी हमारी मर्जी है ?" "क्यों नाराज हो गये ?"-बालिका रो उठी । नायक को आँख भी भीग गई। उसने कहा- "तुम्हारा क्रोध भाई के उपर से नहीं गया, उस भाई के ऊपर से जिसने जीवन और मृत्यु तक साथ देने वाले साथी को पागल कुत्ते की भांति मार डाला-सिर्फ बहिन का अपमान करने के कारण, और जिसने उस पाप को अपने हृदय पर ग्रहण कर क्षमा माँगो । तुम लोग हमारी अज्ञान बहिनें हो जो उन साहमी भाइयों के दुःख को नहीं जानती हो जिनके हृदय धाँय-धाय जल रहे हैं और जिन्होंने जवानी की वासनाएँ त्याग कर सन्यास लिया है, जो फाँसी की रस्सियाँ गले में डाले मृत्यु को ढूढ़ते फिरते हैं । जिन्होंने मृत्यु को बरा है और जिनसे अपनी लाखों बहिनों का नंगा-भूखा रहना. नहीं देखा जाता; तुम लोग उनसे साहनुभूति तक नहीं रख सकतीं ! तुम्हारे छोटे से घर की चहारदीवारी ही तुम्हारे जीवन और अस्तिस्व का केन्द्र है। तुम भारत की अयोग्य पुत्रियाँ हो, तक तुम स्वार्थ और अज्ञान के गढ़ में हो देश की करोड़ों बहिनों की गुलामी नहीं दूर हो सकती।" जब