पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/११०

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( १०१ ) "मुझ में साहस है पर मैं विवाह नहीं करूँगी ? माँ..." "नहीं बहिन, अगर तुम विवाह नहीं करोगी तो वे कल हँसते और गीत गाते हुए फाँसी पर न जायेंगे। वे विरोध करेंगे और उन्हें घसीट कर ले जाया जावेगा । यह उनका निर्णय है, क्या यह ठीक होगा बहिन ?" "उनकी आज्ञा क्या है ?" बालिका ने रोते हुए कहा। "तुम्हारा विवाह ठीक ठीक सकुशल समाप्त हुआ है यह मैं अपनी आँखों से देखू और समय पर उन्हें सूचना देद ।” “विवाह हो जायगा, तुम देख लेना।" बालिका के चेहरे पर मुर्दनी छा रही थी; पर आँस न थे। "उनका एक और भी सन्देश है !" "वह क्या है ?" "उन्होंने कहा है अब तुम्हारी जैसी वीर बालाओं को देश के लिए बलिदान होने की जरूरत है ?" "उनसे कहना, मैंने आज से अपने प्राण और शरीर देश के लिए दिये, पर मैं उनका पथ न ग्रहण कर सकँगी ।" “बहिन, प्रत्येक प्रतिभाशाली मस्तिष्क अपने पथ का निर्माता है। "एक निवेदन और है।